अवचित गेले किंकरकरि
अवचित गेलें किंकरकरिं मी ।
हृदयिं शिरुनि सिंहासनिं बैसुनि शासन मज करि ॥
वाटे आज्ञा त्या नच करितां त्याची आज्ञा मान्य करावी ।
कृत्रिम अंतर दूर करुनि निकटचि बसवुनि करिं ॥
हृदयिं शिरुनि सिंहासनिं बैसुनि शासन मज करि ॥
वाटे आज्ञा त्या नच करितां त्याची आज्ञा मान्य करावी ।
कृत्रिम अंतर दूर करुनि निकटचि बसवुनि करिं ॥
| गीत | - | श्रीपाद कृष्ण कोल्हटकर |
| संगीत | - | श्रीपाद कृष्ण कोल्हटकर |
| स्वर | - | नयना आपटे |
| नाटक | - | मूकनायक |
| राग / आधार राग | - | तिलककामोद |
| चाल | - | अब कित जाऊं मै बिहरन |
| गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
| किंकर | - | चाकर, सेवक. |
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नयना आपटे