देह शुद्ध करुनी
देह शुद्ध करुनी भजनीं भजावे ।
आणिकाचें नाठवावें दोषगुण ॥१॥
साधनें समाधी नको पां उपाधि ।
सर्व समबुद्धी करी मन ॥२॥
ह्मणे जनार्दन घेई अनुताप ।
सांडी पां संकल्प एकनाथा ॥३॥
आणिकाचें नाठवावें दोषगुण ॥१॥
साधनें समाधी नको पां उपाधि ।
सर्व समबुद्धी करी मन ॥२॥
ह्मणे जनार्दन घेई अनुताप ।
सांडी पां संकल्प एकनाथा ॥३॥
| गीत | - | संत जनार्दन महाराज |
| संगीत | - | कमलाकर भागवत |
| स्वर | - | सुमन कल्याणपूर |
| गीत प्रकार | - | संतवाणी |
| अनुताप | - | पश्चाताप. |
| उपाधि | - | पीडा, त्रास, व्यथा. |
| पां (पा) | - | बा (संबोधनार्थी) |
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सुमन कल्याणपूर