देतसे बहु उत्साह मना
देतसे बहु उत्साह मना ।
विमल हिचा हर्षातिरेक नवचि जीवना ॥
निर्मल मंगल पावन पुण्यद । जे त्रिभुवनि ।
तद्भवन सतीमन । प्रसाद त्याचा जनि करि न काय ॥
विमल हिचा हर्षातिरेक नवचि जीवना ॥
निर्मल मंगल पावन पुण्यद । जे त्रिभुवनि ।
तद्भवन सतीमन । प्रसाद त्याचा जनि करि न काय ॥
| गीत | - | वि. सी. गुर्जर |
| संगीत | - | गंधर्व नाटक मंडळी, बाई सुंदराबाई |
| स्वर | - | |
| नाटक | - | एकच प्याला |
| राग / आधार राग | - | खमाज |
| ताल | - | त्रिताल |
| चाल | - | देखोरी गई गई |
| गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत, मना तुझे मनोगत |
टीप - • या गीताचे मूळ ध्वनीमूद्रण आमच्याकडे नाही. आपल्याकडे असल्यास, कृपया aathavanitli.gani@gmail.com या इ-पत्त्यावर पाठवा. ते रसिकांना ऐकण्यासाठी इथे उपलब्ध करून दिले जाईल. |
| विमल | - | स्वच्छ / निर्मल / पवित्र / पांढरा / सुंदर. |
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