गुरु सुरस गोकुळीं
गुरु सुरस गोकुळीं, राधिका मिरवली कृष्णाजवळी बाळी ॥
प्रेमीजन कनवाळू, मन मिळवी मग शिकवी
उपजतचि ज्ञाना-विज्ञाना सुवेळीं ॥
प्रेमीजन कनवाळू, मन मिळवी मग शिकवी
उपजतचि ज्ञाना-विज्ञाना सुवेळीं ॥
| गीत | - | कृ. प्र. खाडिलकर |
| संगीत | - | भास्करबुवा बखले |
| स्वराविष्कार | - | ∙ पं. राम मराठे ∙ प्रकाश घांग्रेकर ( गायकांची नावे कुठल्याही विशिष्ट क्रमाने दिलेली नाहीत. ) |
| नाटक | - | स्वयंवर |
| राग / आधार राग | - | जयजयवंती |
| ताल | - | झपताल |
| चाल | - | चंद्रबदन राधिका |
| गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
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पं. राम मराठे