ही समज तव कुटिल चतुराई
ही समज तव कुटिल चतुराई ।
विदित झाली । आज नाथा ॥
मजसि अबोला । धरुनी लटका ।
मनधरणी मीच ती करावी ।
हा तव हेतु । उचित नच आतां ॥
विदित झाली । आज नाथा ॥
मजसि अबोला । धरुनी लटका ।
मनधरणी मीच ती करावी ।
हा तव हेतु । उचित नच आतां ॥
| गीत | - | वसंत शांताराम देसाई |
| संगीत | - | मास्टर कृष्णराव |
| स्वराविष्कार | - | ∙ माणिक वर्मा ∙ बालगंधर्व ( गायकांची नावे कुठल्याही विशिष्ट क्रमाने दिलेली नाहीत. ) |
| नाटक | - | अमृतसिद्धी |
| राग / आधार राग | - | भैरवी |
| ताल | - | त्रिताल |
| चाल | - | कान कुवर |
| गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
Please consider the environment before printing.
कागद वाचवा.
कृपया पर्यावरणाचा विचार करा.












माणिक वर्मा