जाग बन्सिधरा जाग
जाग बन्सिधरा जाग, जाग नंदलाला
सरली रात ये पहाट मिटली चंद्रशाला
घराघरात आहट ये, उघडली कवाडे
सळसळतो पिंपळ ती झुळुक झुलवी झाडे
चिवचिवती भूपाळी तुज विहंगमाला
गिरिवरती पुसट दिसे अरुण रंगमाला
आली उन्हे अंगणात विणत किरणजाला
दर्शनास आतुरली उठी उठी गोपाला
सरली रात ये पहाट मिटली चंद्रशाला
घराघरात आहट ये, उघडली कवाडे
सळसळतो पिंपळ ती झुळुक झुलवी झाडे
चिवचिवती भूपाळी तुज विहंगमाला
गिरिवरती पुसट दिसे अरुण रंगमाला
आली उन्हे अंगणात विणत किरणजाला
दर्शनास आतुरली उठी उठी गोपाला
गीत | - | राजा बढे |
संगीत | - | भानुकांत लुकतुके |
स्वर | - | श्यामा चित्तार |
गीत प्रकार | - | हे श्यामसुंदर, भावगीत |
अरुण | - | तांबुस / पिंगट / पहाट, पहाटेचा तांबुस प्रकाश / सूर्यसारथी / सूर्य. |
विहंग | - | विहग, पक्षी. |
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