कांहीं नाहीं पाही जनिं
कांहीं नाहीं पाही जनिं मोल । बोल विफल हे । अधम गति परिणामीं ॥
जनकोपाल-प्रखर-ज्वाला । त्वरित जाळिते स्वकुलवंचका ॥
जनकोपाल-प्रखर-ज्वाला । त्वरित जाळिते स्वकुलवंचका ॥
| गीत | - | वीर वामनराव जोशी |
| संगीत | - | वझेबुवा |
| स्वर | - | मास्टर दीनानाथ |
| नाटक | - | रणदुंदुभि |
| चाल | - | पीहू पीहू पीहू काहे बोल |
| गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
Please consider the environment before printing.
कागद वाचवा.
कृपया पर्यावरणाचा विचार करा.












मास्टर दीनानाथ