नयनीति ही बहु प्रेमळा
नयनीति ही बहु प्रेमळा । मज धर्म हा समजाविला ॥
कुपथा मना कधिं दाविना । विमल अबला दे नरा बला ॥
कुपथा मना कधिं दाविना । विमल अबला दे नरा बला ॥
| गीत | - | कृ. प्र. खाडिलकर |
| संगीत | - | मास्टर कृष्णराव |
| स्वर | - | गंगाधर लोंढे |
| नाटक | - | सावित्री |
| राग / आधार राग | - | आनंद भैरवी |
| ताल | - | त्रिवट |
| चाल | - | भ्रुवसमया |
| गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
| नय | - | नीती / न्याय / सद्वर्तन / दूरदर्शित्व / मार्ग दाखविणारा. |
| विमल | - | स्वच्छ / निर्मल / पवित्र / पांढरा / सुंदर. |
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गंगाधर लोंढे