न्याहरी कृष्णाची घेऊनि
न्याहरी कृष्णाची घेउनी
निघाली गवळण वृंदावनी
वैशाख तापतो ऊन न लागे तिला
टोचता कळेना काटाही पाउला
हरिवेडी होउनी,
निघाली गवळण वृंदावनी
आजच्या पहाटे हाक मारल्याविना
श्रीरंग जाई तो घेऊनिया गोधना
यमुनातटी काननी,
निघाली गवळण वृंदावनी
एकान्त पाहुनी भेटून मनमोहना
आपल्या करे ती भरविल दध्योदना
हनुवटी कुरवाळुनी,
निघाली गवळण वृंदावनी
निघाली गवळण वृंदावनी
वैशाख तापतो ऊन न लागे तिला
टोचता कळेना काटाही पाउला
हरिवेडी होउनी,
निघाली गवळण वृंदावनी
आजच्या पहाटे हाक मारल्याविना
श्रीरंग जाई तो घेऊनिया गोधना
यमुनातटी काननी,
निघाली गवळण वृंदावनी
एकान्त पाहुनी भेटून मनमोहना
आपल्या करे ती भरविल दध्योदना
हनुवटी कुरवाळुनी,
निघाली गवळण वृंदावनी
गीत | - | ग. दि. माडगूळकर |
संगीत | - | स्नेहल भाटकर |
स्वर | - | कुमुदिनी पेडणेकर, सुलोचना चव्हाण |
चित्रपट | - | तुका झालासे कळस |
गीत प्रकार | - | चित्रगीत, हे श्यामसुंदर |
कानन | - | अरण्य, जंगल. |
दध्योदन | - | दहीभात. |