A Non-Profit Non-Commercial Public Service Initiative by Alka Vibhas   
सखे ग कृष्णमूर्त

सखे ग कृष्णमूर्त गोजिरी
ही ठसली मम अंतरी

धरी वदनी मधु बासरी
मधुर काढी सूर श्रीहरी
बावरे सृष्टि-सुंदरी

कर्णात कनक कुंडले
कंठी वैजयंती ही रुळे
माणिक-मुकुट शिरावरी
शोभतो हा कितीतरी
झळकते प्रभा ही बिल्वरी