सखी शेजारिणी तू हसत रहा
सखी शेजारिणी तू हसत रहा
हास्यात पळे गुंफीत रहा
दीर्घ बदामी श्यामल डोळे
एक सांद्रघन स्वप्न पसरले
धूपछांव मधी यौवन खेळे
तू जीवनस्वप्ने रचित रहा
सहज मधुर तू हसता वळुनी
स्मित-किरणी धरी क्षितिज तोलुनी
विषाद मनीचा जाय उजळुनी
तू वीज, खिन्न घनी लवत रहा
मूक जिथे स्वरगीत होतसे
हास्य मधुर तव तिथे स्फुरतसे
जीवन नाचत गात येतसे
स्मित-चाळ त्यास बांधून पहा
हास्यात पळे गुंफीत रहा
दीर्घ बदामी श्यामल डोळे
एक सांद्रघन स्वप्न पसरले
धूपछांव मधी यौवन खेळे
तू जीवनस्वप्ने रचित रहा
सहज मधुर तू हसता वळुनी
स्मित-किरणी धरी क्षितिज तोलुनी
विषाद मनीचा जाय उजळुनी
तू वीज, खिन्न घनी लवत रहा
मूक जिथे स्वरगीत होतसे
हास्य मधुर तव तिथे स्फुरतसे
जीवन नाचत गात येतसे
स्मित-चाळ त्यास बांधून पहा
गीत | - | वा. रा. कांत |
संगीत | - | वसंत प्रभू |
स्वर | - | अरुण दाते |
राग | - | पहाडी |
गीत प्रकार | - | भावगीत |
सांद्र | - | निबिड, दाट. |