उमटल्या क्षितिज रेषा
उमटल्या क्षितिज रेषा..
या गर्द क्षितिज रेषा..
विराट वाळवंटाच्या रखरखीत वाळूवरती
उमटल्या क्षितिज रेषा..
या गर्द क्षितिज रेषा..
तिरीप उन्हाची,
भोवळलेला कुणी पांथस्थ कण्हला, रडला
गरगर भोवर्या मधे अडकला..
पाऊल थकले,
अडखळलेला तरी तृषेने आसुसलेला
मृगजळ भुलवी, तहानलेला..
या गर्द क्षितिज रेषा..
विराट वाळवंटाच्या रखरखीत वाळूवरती
उमटल्या क्षितिज रेषा..
या गर्द क्षितिज रेषा..
तिरीप उन्हाची,
भोवळलेला कुणी पांथस्थ कण्हला, रडला
गरगर भोवर्या मधे अडकला..
पाऊल थकले,
अडखळलेला तरी तृषेने आसुसलेला
मृगजळ भुलवी, तहानलेला..
गीत | - | विजय बोंद्रे |
संगीत | - | शांक-नील |
स्वर | - | रवींद्र साठे |
नाटक | - | क्षितिज रेषा |
गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
मृगजळ | - | आभास. |