वाजवी पावा गोविंद
शरदाचे चांदणे, मधुवनी फुलला निशिगंध
नाचतो गोपीजनवृंद, वाजवी पावा गोविंद !
पैंजणे रुणझुणती, मेखला कटिवर किणकिणती
वाहते यमुनाजळ धुंद
वारा झुळझुळतो, फुलांचा सुगंध दरवळतो
सांडतो भरुनी आनंद
धरुनिया फेर हरीभवती, गोजिर्या गोपी गुणगुणती
आगळा रासाचा छंद
नाचतो गोपीजनवृंद, वाजवी पावा गोविंद !
पैंजणे रुणझुणती, मेखला कटिवर किणकिणती
वाहते यमुनाजळ धुंद
वारा झुळझुळतो, फुलांचा सुगंध दरवळतो
सांडतो भरुनी आनंद
धरुनिया फेर हरीभवती, गोजिर्या गोपी गुणगुणती
आगळा रासाचा छंद
| गीत | - | ग. दि. माडगूळकर |
| संगीत | - | सुधीर फडके |
| स्वर | - | माणिक वर्मा |
| गीत प्रकार | - | हे श्यामसुंदर, भावगीत |
| आगळा | - | अग्रेसर / श्रेष्ठ / जास्त / अधिक / वैशिष्ट्यपूर्ण. |
| कटि | - | कंबर. |
| पावा | - | बासरी, वेणु. |
| मेखला | - | कमरपट्टा. |
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माणिक वर्मा