वसुधातलरमणीयसुधाकर
वसुधातलरमणीयसुधाकर । व्यसनघनतिमिरिं बुडविसी कैसा? ॥
सृजनि जया परमेश सुखावे ! नाशुनि ह्या, तुजसि मोद नृशंसा ॥
सृजनि जया परमेश सुखावे ! नाशुनि ह्या, तुजसि मोद नृशंसा ॥
| गीत | - | वि. सी. गुर्जर |
| संगीत | - | गंधर्व नाटक मंडळी, बाई सुंदराबाई |
| स्वर | - | अजितकुमार कडकडे |
| नाटक | - | एकच प्याला |
| राग / आधार राग | - | अल्हैय्याबिलावल |
| ताल | - | त्रिवट |
| चाल | - | सुमरन कर |
| गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
| नृशंस | - | क्रूर. |
| सृजन | - | निर्मिती. |
| सुधाकर | - | चंद्र. |
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अजितकुमार कडकडे