आज घनु घनु बरसू दे
आज घनु घनु बरसू दे
सप्तसुरांचे अमृत प्राशून देहभान हरपू दे
कालिंदी के तट पर कान्हा
बन्सी का है खेल रचायो
गाय बनूं इस पार मैं तरसूं
मृद्गंध ना सह पाऊं रे
आज अधिर मन तरसू दे
सप्तसुरांचे अमृत प्राशुन देहभान हरपू दे
बरसे बरसे मेघ अनावर
भिजले अंग गगनभर होई
श्यामल श्यामल दाटून येता
मनात निर्झर पाझर होई
आज मधुर मधु निरसू दे
सप्तसुरांचे अमृत प्राशुन देहभान हरपू दे
सप्तसुरांचे अमृत प्राशून देहभान हरपू दे
कालिंदी के तट पर कान्हा
बन्सी का है खेल रचायो
गाय बनूं इस पार मैं तरसूं
मृद्गंध ना सह पाऊं रे
आज अधिर मन तरसू दे
सप्तसुरांचे अमृत प्राशुन देहभान हरपू दे
बरसे बरसे मेघ अनावर
भिजले अंग गगनभर होई
श्यामल श्यामल दाटून येता
मनात निर्झर पाझर होई
आज मधुर मधु निरसू दे
सप्तसुरांचे अमृत प्राशुन देहभान हरपू दे
गीत | - | गजेंद्र अहिरे |
संगीत | - | आनंद मोडक |
स्वर | - | विभावरी आपटे-जोशी, विजय कोपरकर, रोहित दाते |
चित्रपट | - | मायबाप |
गीत प्रकार | - | चित्रगीत, ऋतू बरवा |
कालिंदी | - | यमुना नदी. कालिंद पर्वतातून उगम पावलेल्या यमुना नदीस कालिंदी म्हणूनही संबोधण्यात येते. |