दारिं याचक उभा
दारिं याचक उभा
प्रिय सखि, दारिं याचक उभा
कटाक्षात रमणिच्या लाभे
सर्वस्वच वल्लभा
नैराश्याचा तम ओसरता
प्राचीवरती तेज उजळता
मुग्ध उषेच्या गाली विलासते,
अवचित अरुण प्रभा
अनुरागा वरता प्रीतीने
मातीचेही बनेल सोने
अद्वैताच्या साक्षात्कारे,
घालू गवसणी नभा
तू हसलिस की फुले चांदणे
संभ्रमात मन फुले दिवाणे
हसवितात का नेत्र भासते,
दावुनिया मयसभा
प्रिय सखि, दारिं याचक उभा
कटाक्षात रमणिच्या लाभे
सर्वस्वच वल्लभा
नैराश्याचा तम ओसरता
प्राचीवरती तेज उजळता
मुग्ध उषेच्या गाली विलासते,
अवचित अरुण प्रभा
अनुरागा वरता प्रीतीने
मातीचेही बनेल सोने
अद्वैताच्या साक्षात्कारे,
घालू गवसणी नभा
तू हसलिस की फुले चांदणे
संभ्रमात मन फुले दिवाणे
हसवितात का नेत्र भासते,
दावुनिया मयसभा
गीत | - | उषा लिमये |
संगीत | - | राम फाटक |
स्वर | - | गोपाळ कौशिक |
गीत प्रकार | - | भावगीत |
अनुराग | - | प्रेम, निष्ठा. |
अरुण | - | तांबुस / पिंगट / पहाट, पहाटेचा तांबुस प्रकाश / सूर्यसारथी / सूर्य. |
उषा | - | पहाट. |
गवसणी | - | आच्छादन, वेष्टन. |
तम | - | अंधकार. |
प्रभा | - | तेज / प्रकाश. |
प्राची | - | पूर्वदिशा. |
वल्लभ | - | पती / प्रिय. |