दीन पतित अन्यायी
दीन पतित अन्यायी । शरण आलें विठाबाई ॥१॥
मी तों आहें यातिहीन । नकळे कांहीं आचरण ॥२॥
मज अधिकार नाहीं । भेट देई विठाबाई ॥३॥
ठांव देई चरणापाशीं । तुझी कान्होपात्रा दासी ॥४॥
मी तों आहें यातिहीन । नकळे कांहीं आचरण ॥२॥
मज अधिकार नाहीं । भेट देई विठाबाई ॥३॥
ठांव देई चरणापाशीं । तुझी कान्होपात्रा दासी ॥४॥
| गीत | - | संत कान्होपात्रा |
| संगीत | - | मास्टर कृष्णराव, विनायकबुवा पटवर्धन |
| स्वर | - | मधुवंती दांडेकर |
| नाटक | - | संत कान्होपात्रा |
| राग / आधार राग | - | ललत |
| ताल | - | केरवा |
| गीत प्रकार | - | संतवाणी, नाट्यसंगीत, विठ्ठल विठ्ठल |
| याती | - | जात. |
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मधुवंती दांडेकर