धनी मी पति वरिन
धनी मी, पति वरिन कशी अधना ।
पति जरि अधन, निधनसम;
मानी भामा विफल इतर सुगुणा ॥
प्रखर पराक्रम वीर भानु भुलवित उषा रक्तवदना ।
तोचि निकट मग जातां जाळी तिजला; ऐशी भीति मना ॥
पति जरि अधन, निधनसम;
मानी भामा विफल इतर सुगुणा ॥
प्रखर पराक्रम वीर भानु भुलवित उषा रक्तवदना ।
तोचि निकट मग जातां जाळी तिजला; ऐशी भीति मना ॥
| गीत | - | कृ. प्र. खाडिलकर |
| संगीत | - | गोविंदराव टेंबे |
| स्वर | - | |
| नाटक | - | मानापमान |
| राग / आधार राग | - | भूप |
| ताल | - | त्रिवट |
| चाल | - | प्रभु उगड्डुण गिनत |
| गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
टीप - • या गीताचे मूळ ध्वनीमूद्रण आमच्याकडे नाही. आपल्याकडे असल्यास, कृपया aathavanitli.gani@gmail.com या इ-पत्त्यावर पाठवा. ते रसिकांना ऐकण्यासाठी इथे उपलब्ध करून दिले जाईल. |
| भानू | - | सूर्य. |
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