धरिला वृथा छंद
धरिला वृथा छंद
नव्हतेच जर फूल, कोठून मकरंद?
जरि जीव हो श्रांत
नाही तृषा शांत
जलशून्य आभास शोधीत मृग अंध
झाले तुझे भास
मी रोधिले श्वास
माझीच मज आस घाली असा बंध
पथ सर्व वैराण
पायी नुरे त्राण
माझेच घर आज झाले मला बंद
नव्हतेच जर फूल, कोठून मकरंद?
जरि जीव हो श्रांत
नाही तृषा शांत
जलशून्य आभास शोधीत मृग अंध
झाले तुझे भास
मी रोधिले श्वास
माझीच मज आस घाली असा बंध
पथ सर्व वैराण
पायी नुरे त्राण
माझेच घर आज झाले मला बंद
गीत | - | मंगेश पाडगांवकर |
संगीत | - | श्रीनिवास खळे |
स्वर | - | सुरेश वाडकर |
गीत प्रकार | - | भावगीत |
तृषा | - | तहान. |
नुरणे | - | न उरणे. |
मरंद (मकरंद) | - | फुलातील मध. |
श्रांत | - | थकलेला, भागलेला. |