धूलियता पदिं तुझ्या
धूलियता पदिं तुझ्या पापनाश या जनांत ॥
नाहि दुजी कांहि वासना । ठाव चरणि विभव मजसि ।
दैवहता हीच भावना । दैव दिसलि सदय रमणी ॥
नाहि दुजी कांहि वासना । ठाव चरणि विभव मजसि ।
दैवहता हीच भावना । दैव दिसलि सदय रमणी ॥
गीत | - | भा. वि. वरेरकर |
संगीत | - | वझेबुवा |
स्वर | - | प्रभाकर कारेकर |
नाटक | - | संन्याशाचा संसार |
गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
रमणी | - | सुंदर स्त्री / पत्नी. |