दुनियेच्या अंधेर नगरीचा
दुनियेच्या अंधेर नगरीचा न्यायच सारा उलटा
सती घळघळा रडती येथे, मजेत हसती कुलटा
चोर सोडुनि संन्याशाला सुळी चढविते जनता
इथे कोठली गरुडभरारी, मान मिळतसे चिलटा
सती घळघळा रडती येथे, मजेत हसती कुलटा
चोर सोडुनि संन्याशाला सुळी चढविते जनता
इथे कोठली गरुडभरारी, मान मिळतसे चिलटा
गीत | - | विद्याधर गोखले |
संगीत | - | पं. राम मराठे |
स्वर | - | पं. राम मराठे |
नाटक | - | मेघमल्हार |
गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |