घेई विहगसम भरारि
घेई विहगसम भरारि मानस हें भारी ॥
उन्मादक गीताचें । छत सुंदर पसरावें ।
वाटे या क्षणिं मनास । मन वेडें, बाई ॥
उन्मादक गीताचें । छत सुंदर पसरावें ।
वाटे या क्षणिं मनास । मन वेडें, बाई ॥
| गीत | - | ना. सी. फडके |
| संगीत | - | केशवराव भोळे, हिराबाई बडोदेकर, सुरेशबाबू माने, सवाई गंधर्व |
| स्वर | - | हिराबाई बडोदेकर |
| नाटक | - | युगान्तर |
| राग / आधार राग | - | मांड |
| ताल | - | एकताल |
| गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
| उन्माद | - | कैफ / झिंग / धुंदी. |
| मानस | - | मन / चित्त / मानस सरोवर. |
| विहंग | - | विहग, पक्षी. |
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हिराबाई बडोदेकर