इन्द्र जिमि जम्भ पर,
बाडव सुअम्भ पर,
रावन सदम्भ पर,
रघुकुलराज है ॥
पौन बारिबाह पर,
सम्भु रतिनाह पर,
ज्यों सहस्रबाह पर,
रामद्विजराज है ॥
दावा द्रुम दण्ड पर,
चीता मृग-झुण्ड पर,
'भूषन' बितुण्ड पर,
जैसे मृगराज है ॥
तेज तम अंस पर,
कान्ह जिमि कंस पर,
त्यों मलिच्छ बंस पर,
सेर सिवराज है ॥
इन्द्र जिमि जम्भ पर, बाडव सुअम्भ पर,
रावन सदम्भ पर रघुकुल-राज है ।
पौन बारिबाह पर, सम्भु रतिनाह पर,
ज्यों सहस्रबाह पर राम-द्विजराज है ॥
दावा द्रुम दण्ड पर, चीता मृग-झुण्ड पर,
'भूषन' बितुण्ड पर जैसे मृगराज है ।
तेज तम अंस पर, कान्ह जिमि कंस पर,
त्यों मलिच्छ बंस पर सेर सिवराज है ॥५६॥
शब्दार्थ-
अम्भ - (अंभस् (संस्कृत)) जल, यहाँ समुद्र से तात्पर्य है
दंभ - घमंडी
रघुकुलराज - रामचन्द्र
बारिबाह - (वारि (पाणी) + वाह (नेणे) (संस्कृत)), जल वहन करने वाला, बादल
रतिनाह - रति के स्वामी, कामदेव
रामद्विजराज - परशुराम
दावा - वन की अग्नी
द्रुमदण्ड - वृक्ष की शाखाएँ
वितुण्ड - हाथी
तम अंस - अंधकार का समूह
अर्थ- जिस प्रकार इन्द्र ने जम्भ राक्षस को, श्रीराम ने घमंडी रावण को, महादेव जी ने रतिनाथ (कामदेव) को, परशुराम ने सहस्रबाहु को और श्रीकृष्ण ने कंस को नष्ट किया और जैसे बाड़व (बड़वानल) समुद्र को, पवन बादलों को, दावाग्नी (जंगल की आग) वृक्षों की शाखाओं को, चीता हिरणों के झुंडों को, सिंह हाथियों को और सूर्य का तेज अंधकार समूह को नष्ट कर देता है, उसी प्रकार शिवाजी मुसलमान वंश का नाश करने वाले हैं ।
विवरण- यहाँ शिवाजी 'उपमेय' के इन्द्र, राम, महादेव, कृष्ण, बड़वानल आदि अनेक उपमान कथन किये गये हैं । जिस स्थान पर एक ही उपमेय के बहुत से उपमान हो उसे श्रेष्ठ कवि मालोपमा कहते हैं ।
टिप्पणी-
• जम्भ नामक राक्षस महिषासुर का पिता था । इसे इन्द्र ने मारा था ।
• समाधिस्य महादेव ने अपने तिसरे नेत्र द्वारा समाधि भंग करने के लिए आये हुए कामदेव को भस्म कर दिया था, यह प्रसिद्ध है ।
• सहस्रबाहु (कार्तवीर्य) एक बड़ा पराक्रमी राजा था । इसकी एक सहस्र भुजाएँ थीं । इसने परशुराम के पिता जमदग्नि ऋषि का सिर काटा था । इस पर क्रुद्ध हो परशुराम ने इसे मार डाला था ।
(संपादित)
'महाकवि भूषणकृत शिवराज-भूषण- विशद भूमिका, शब्दार्थ, पद्यार्थ, ऐतिहासिक स्थानों और व्यक्तियों के परिचय सहित' या पुस्तकातून. (टीकाकार- पं. राजनारायण शर्मा (हिन्दी प्रभाकर), भूमिका-लेखक- श्री. देवचन्द्र विशारद)
सौजन्य- हिन्दी भवन, जालंधर और इलाहाबाद.
* ही लेखकांची वैयक्तिक मते आहेत. या लेखात व्यक्त झालेली मते व मजकूर यांच्याशी 'आठवणीतली गाणी' सहमत किंवा असहमत असेलच, असे नाही.
इतर संदर्भ लेख
महाकवि भूषण के शब्दों में छत्रपति शिवाजी का शौर्य-वर्णन-
'दावा द्रुम दंड पर, चीता मृगझुंड पर'
इन दिनों भारत में चीते का ज़िक्र है । ७४ साल बाद देश में चीते आए जिन्हें नामीबिया से लाकर मध्य-प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा गया था । यूं तो किसी महापुरुष के भीतर के बल को भी चीते की उपमा दी जाती है । फिर इस देश की धरती ने ऐसे कई महापुरुषों को जन्म दिया जिनके भीतर शेर का साहस था, चीते की तेज़ी थी और बाज़ की नज़र । जिन्होंने अपने शौर्य और पराक्रम के बल पर भारत का परचम लहराया । उन्हीं में एक नाम हैं शिवाजी महाराज । कवि भूषण की इस कविता से उनके पूरे व्यक्तित्व की कल्पना की जा सकती है ।
भूषण वैसे तो रीति काल के कवि थे लेकिन उस दौर में उनकी कलम वीर रस से सराबोर थी । माना जाता है कि भूषण कई राजाओं के यहां रहे और वहां सम्मान प्राप्त किया । पन्ना के महाराज छत्रसाल के यहाँ इनका बड़ा मान हुआ । भूषण ने प्रमुख रूप से शिवाजी और छत्रसाल की प्रशंसा में ही लिखा है । अब ज़रा भूषण के युद्ध वर्णन में छंद का ध्वन्यात्मक सौंदर्य और अलंकारों का सजीव चित्रण देखिए -
साजि चतुरंग वीर रंग में तुरंग चढ़ि,
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं ।
'भूषण' भनत नाद विहद नगारन के,
नदी नद मद गैबरन के रलत है ॥
भावार्थ:- घोड़े पर सवार छत्रपति शिवा जी वीरता और कौशल से परिपूर्ण अपनी चतुरंगिणी सेना की अगुआई करते हुए जंग जीतने के लिए निकल पड़े हैं । बजते हुए नगाड़ों की आवाज़ और मतवाले हाथियों के मद से सभी नदी-नाले भर गए हैं ।
ऐल फैल खैल-भैल खलक में गैल गैल,
गजन की ठैल पैल सैल उसलत हैं ।
तारा सो तरनि धूरि धारा में लगत जिमि,
थारा पर पारा पारावार यों हलत हैं ॥
भावार्थ:- भीड़ के कोलाहल, चीख-पुकार के फैलने से रास्तों पर खलबली मच गयी है । मदमस्त हाथियों की चाल ऐसी है कि धक्का लगने से आस-पास के पहाड़ तक उखड़कर गिर जा रहे हैं । विशाल सेना के चलने से उड़ने वाली धूल के कारण सूरज भी एक टिमटिमाते हुए तारे सा दिखने लगा है । विशाल चतुरंगिणी सेना के चलने से संसार ऐसे डोल रहा है जैसे थाल में रखा हुआ पारा हिलता है ।
बाने फहराने घहराने घण्टा गजन के,
नाहीं ठहराने राव राने देस देस के ।
नग भहराने ग्रामनगर पराने सुनि,
बाजत निसाने सिवराज जू नरेस के ॥
भावार्थ:- शिवाजी की सेना के झंडों के फहराने से और हाथियों के गले में बंधे हुए घण्टों की आवाजों से देश-देश के राजा-महाराजा पल भर भी न ठहर सकें । नगाड़ों की आवाज़ से पहाड़ तक हिल गए, गांवों और नगरों के लोग इधर-उधर भागने लगे ।
हाथिन के हौदा उकसाने कुंभ कुंजर के,
भौन को भजाने अलि छूटे लट केस के ।
दल के दरारे हुते कमठ करारे फूटे,
केरा के से पात बिगराने फन सेस के ॥
भावार्थ:- शत्रु-सेना के हाथियों पर बंधे हुए हौदे घड़ों की तरह टूट गये । शत्रु-देशों की स्त्रियां, जब अपने-अपने घरों की ओर भागीं तो उनके केश हवा में इस तरह उड़ रहे थे, जैसे कि काले रंग के भौंरों के झुंड के झुंड उड़ रहे हों । शिवाजी की सेना के चलने की धमक से कछुए की मजबूत पीठ टूटने लगी है और शेषनाग का फन मानो केले के पत्तों की तरह फैल गया ।
इन्द्र जिमि जंभ पर, बाडब सुअंभ पर,
रावन सदंभ पर, रघुकुल राज हैं ।
पौन बारिबाह पर, संभु रतिनाह पर,
ज्यौं सहस्रबाह पर राम-द्विजराज हैं ॥
दावा द्रुम दंड पर, चीता मृगझुंड पर,
'भूषन' वितुंड पर, जैसे मृगराज हैं ।
तेज तम अंस पर, कान्ह जिमि कंस पर,
त्यौं मलिच्छ बंस पर, सेर शिवराज हैं ॥
भावार्थ:- जिस प्रकार जंभासुर पर इंद्र, समुद्र पर बड़वानल, रावण के दंभ पर रघुकुल राज, बादलों पर पवन, रति के पति अर्थात कामदेव पर शंभु अर्थात भगवान शिव, सहस्त्रबाहु पर परशुराम, पेड़ों के तनों पर दावानल, हिरणों के झुंड पर चीता, हाथी पर शेर, अंधेरे पर प्रकाश की एक किरण, कंस पर कृष्ण भारी हैं उसी प्रकार म्लेच्छ वंश पर शिवाजी शेर के समान हैं ।
(संपादित)
सदर- काव्य डेस्क
सौजन्य- दै. अमर उजाला (e-paper, Hindi)
(Referenced page was accessed on 31 Jan 2025)
* ही लेखकाची वैयक्तिक मते आहेत. या लेखात व्यक्त झालेली मते व मजकूर यांच्याशी 'आठवणीतली गाणी' सहमत किंवा असहमत असेलच, असे नाही.
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