जन सारे मजला म्हणतिल
जन सारे मजला म्हणतिल कीं ॥
दारिद्र्यानें बहुतचि छळिलें ।
धन त्याजवळीं कांहिं न उरलें ।
म्हणुनि कर्म हें अनुचित केलें ।
ऐसें दूषण देतिल कीं ॥
दारिद्र्यानें बहुतचि छळिलें ।
धन त्याजवळीं कांहिं न उरलें ।
म्हणुनि कर्म हें अनुचित केलें ।
ऐसें दूषण देतिल कीं ॥
| गीत | - | गो. ब. देवल |
| संगीत | - | गो. ब. देवल |
| स्वर | - | श्रीपादराव नेवरेकर |
| नाटक | - | मृच्छकटिक |
| राग / आधार राग | - | तोडी |
| ताल | - | त्रिताल |
| गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
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श्रीपादराव नेवरेकर