का धरिला परदेश सजणा
का धरिला परदेश, सजणा
का धरिला परदेश?
श्रावण वैरी बरसे झिरमिर
चैन पडेना जीवा क्षणभर
जाऊ कोठे, राहू कैसी, घेऊ जोगिणवेष?
रंग न उरला गाली ओठी
भरती आसू काजळकाठी
शृंगाराचा साज उतरला मुक्त विखुरले केश
का धरिला परदेश?
श्रावण वैरी बरसे झिरमिर
चैन पडेना जीवा क्षणभर
जाऊ कोठे, राहू कैसी, घेऊ जोगिणवेष?
रंग न उरला गाली ओठी
भरती आसू काजळकाठी
शृंगाराचा साज उतरला मुक्त विखुरले केश
| गीत | - | शान्ता शेळके |
| संगीत | - | पं. जितेंद्र अभिषेकी |
| स्वर | - | बकुळ पंडित |
| नाटक | - | हे बंध रेशमाचे |
| राग / आधार राग | - | मारुबिहाग |
| गीत प्रकार | - | ऋतू बरवा, नाट्यसंगीत |
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बकुळ पंडित