मद्य-वपु-घट लत्ताप्रहारें
मद्य-वपु-घट लत्ताप्रहारें फुटत हे,
रुधिरसम मत्तमद वाहे, न भू भार साहे ॥
मधु-वध-कुपित समर जरि गुरुवर करी घोर,
विगतविजय कच नोहे ॥
रुधिरसम मत्तमद वाहे, न भू भार साहे ॥
मधु-वध-कुपित समर जरि गुरुवर करी घोर,
विगतविजय कच नोहे ॥
| गीत | - | कृ. प्र. खाडिलकर |
| संगीत | - | गंधर्व नाटक मंडळी, हिराबाई बडोदेकर |
| स्वर | - | विश्वनाथ बागुल |
| नाटक | - | विद्याहरण |
| राग / आधार राग | - | सोहनी |
| ताल | - | त्रिवट |
| चाल | - | काहे अब तुम आये |
| गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
| मत्त | - | माजलेला, दांडगा. |
| मद | - | उन्माद, कैफ |
| रुधिर | - | रक्त. |
| वपु | - | शरीर. |
| विगत | - | गेलेला, गत. |
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विश्वनाथ बागुल