मुदित सवत नच
मुदित सवत नच या काला; हंसली गदा न;
कसली फुगली, बसली रुसली;
नाहीं निज रिपुपण तिज जलांत बुडतां दिसला ॥
समरीं बलधर वीरांचा कर हिज दावी अरिवरविनाश;
हा खरा उपचार, शोभवी फार अबला ॥
कसली फुगली, बसली रुसली;
नाहीं निज रिपुपण तिज जलांत बुडतां दिसला ॥
समरीं बलधर वीरांचा कर हिज दावी अरिवरविनाश;
हा खरा उपचार, शोभवी फार अबला ॥
| गीत | - | कृ. प्र. खाडिलकर |
| संगीत | - | भास्करबुवा बखले |
| स्वर | - | बालगंधर्व |
| नाटक | - | द्रौपदी |
| राग / आधार राग | - | बिहाग |
| ताल | - | त्रिवट |
| चाल | - | ना देरे तन तदेरे ना |
| गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
| अरि | - | शत्रु. |
| उपचार | - | रीत, शिष्टाचार. |
| मुदित | - | हर्षभरित, आनंदित. |
| रिपु | - | शत्रु. |
Please consider the environment before printing.
कागद वाचवा.
कृपया पर्यावरणाचा विचार करा.












बालगंधर्व