नाट्यगाननिपुण कलावतिची
नाट्यगाननिपुण कलावतिची ही माया ॥
अंतरिंचा भाव एक । दाखवि वरपांगि एक ।
बाह्यांतर वृत्ति देख । भिन्न भिन्न छाया ॥
अंतरिंचा भाव एक । दाखवि वरपांगि एक ।
बाह्यांतर वृत्ति देख । भिन्न भिन्न छाया ॥
| गीत | - | गो. ब. देवल |
| संगीत | - | गो. ब. देवल |
| स्वराविष्कार | - | ∙ विश्वनाथ बागुल ∙ अजितकुमार कडकडे ( गायकांची नावे कुठल्याही विशिष्ट क्रमाने दिलेली नाहीत. ) |
| नाटक | - | संशयकल्लोळ |
| राग / आधार राग | - | दरबारी कानडा |
| चाल | - | ठुमक चलत |
| गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
| वरपांगी | - | वरवर, सकृतदर्शनी. |
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विश्वनाथ बागुल