पशुमात्र खचित गणला
पशुमात्र खचित गणला । निजामी हा तसा ।
जुपला जन । तनमनबंधन साधुनि सेवेला ॥
जरि विचारधन हरण होत नित ।
मानव राक्षस बनत अदयसा ।
भया, नया, कदा, नच स्मरत ॥
जुपला जन । तनमनबंधन साधुनि सेवेला ॥
जरि विचारधन हरण होत नित ।
मानव राक्षस बनत अदयसा ।
भया, नया, कदा, नच स्मरत ॥
गीत | - | न. ग. कमतनूरकर |
संगीत | - | वझेबुवा |
स्वर | - | शरद जांभेकर |
नाटक | - | श्री |
राग | - | अडाणा |
ताल | - | त्रिवट |
गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |