प्रभातसमयो पातला
प्रभातसमयो पातला, आता जाग बा विठ्ठला !
दारी तव नामाचा चालला गजरू
देव-देवांगना गाती नारद-तुंबरू
दिंड्या-पताकांचा मेळा, तुझिया अंगणी थाटला !
दिठी दिठी लागली तुझिया श्रीमुखकमलावरी
श्रवणीमुखी रंगली श्रीधरा, नामाची माधुरी
प्राणांची आरती, काकडा नयनी चेतविला !
दारी तव नामाचा चालला गजरू
देव-देवांगना गाती नारद-तुंबरू
दिंड्या-पताकांचा मेळा, तुझिया अंगणी थाटला !
दिठी दिठी लागली तुझिया श्रीमुखकमलावरी
श्रवणीमुखी रंगली श्रीधरा, नामाची माधुरी
प्राणांची आरती, काकडा नयनी चेतविला !
| गीत | - | ग. दि. माडगूळकर |
| संगीत | - | सुधीर फडके |
| स्वर | - | सुधीर फडके |
| चित्रपट | - | संत जनाबाई |
| राग / आधार राग | - | भूप, देसकार |
| गीत प्रकार | - | विठ्ठल विठ्ठल, चित्रगीत |
| काकडा | - | चिंधीला पीळ देऊन केलेली दिव्याची मोठी वात. |
| चेतवणे | - | उद्दीपित करणे, पेटवणे. |
| तुंबरु | - | गंधर्व. |
| दिठी | - | दृष्टी. |
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सुधीर फडके