प्रिय जरि हा सहवास
प्रिय जरि हा सहवास मला । आवरी उतावीळ मनाला; बंध धर्म सकला ॥
बंधन-योगे अमर संसार । चंचल दु:खचि तो अविचार धरीना संतोषाला ॥
बंधन-योगे अमर संसार । चंचल दु:खचि तो अविचार धरीना संतोषाला ॥
| गीत | - | कृ. प्र. खाडिलकर |
| संगीत | - | मास्टर कृष्णराव |
| स्वर | - | गंगाधर लोंढे |
| नाटक | - | सावित्री |
| राग / आधार राग | - | जिल्हा, पिलू |
| ताल | - | त्रिवट |
| चाल | - | पियाबिन चैन |
| गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
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गंगाधर लोंढे