प्रिया सुभद्रा घोर वनीं
          प्रिया सुभद्रा घोर वनीं ह्या निशाचरें भेटविली ।
हेंचि कळेना गुप्त कशी ती एकाएकीं झाली ॥
मायावश केलें । की मज स्वप्नचि हें पडलें ॥
          हेंचि कळेना गुप्त कशी ती एकाएकीं झाली ॥
मायावश केलें । की मज स्वप्नचि हें पडलें ॥
| गीत | - | अण्णासाहेब किर्लोस्कर | 
| संगीत | - | अण्णासाहेब किर्लोस्कर | 
| स्वर | - | भार्गवराम आचरेकर | 
| नाटक | - | सौभद्र | 
| गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत | 
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 भार्गवराम आचरेकर