रूपसुंदर सखी साजिरी
रूपसुंदर सखी साजिरी गुणखनी
दूर जाता उरे काय या जीवनी?
पाहु कोठे अता मोहना ती प्रिया?
शांतवू मी कसा विकल हृदयास या?
प्रीतीसुम लोपले एकदा उमलुनी !
रमविती ना जीवा रम्य संध्याउषा
काय मजला अता पौर्णिमेची निशा?
आग ओली झरे शीत ज्योत्स्नेतुनी !
दूर जाता उरे काय या जीवनी?
पाहु कोठे अता मोहना ती प्रिया?
शांतवू मी कसा विकल हृदयास या?
प्रीतीसुम लोपले एकदा उमलुनी !
रमविती ना जीवा रम्य संध्याउषा
काय मजला अता पौर्णिमेची निशा?
आग ओली झरे शीत ज्योत्स्नेतुनी !
| गीत | - | शान्ता शेळके |
| संगीत | - | पं. जितेंद्र अभिषेकी |
| स्वर | - | अरविंद पिळगांवकर |
| नाटक | - | वासवदत्ता |
| गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
| उषा | - | पहाट. |
| खनि | - | खाण. |
| ज्योत्स्ना | - | चांदणे. |
| विकल | - | विव्हल. |
| सुम | - | फूल. |
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अरविंद पिळगांवकर