सरिता जनिं या प्रबला
सरिता जनिं या प्रबला भारी ।
जरि दिसती शीर्ण नयनांते अविकारी ॥
उत्तान गमति दर्शनी जरी । गंभीर अति तरी ।
भवजलधीहुनि दुस्तर संसारी ॥
जरि दिसती शीर्ण नयनांते अविकारी ॥
उत्तान गमति दर्शनी जरी । गंभीर अति तरी ।
भवजलधीहुनि दुस्तर संसारी ॥
| गीत | - | वि. सी. गुर्जर |
| संगीत | - | गंधर्व नाटक मंडळी, बाई सुंदराबाई |
| स्वर | - | |
| नाटक | - | एकच प्याला |
| राग / आधार राग | - | मुलतानी |
| ताल | - | त्रिवट |
| चाल | - | हमसे तुम रार |
| गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
टीप - • या गीताचे मूळ ध्वनीमूद्रण आमच्याकडे नाही. आपल्याकडे असल्यास, कृपया aathavanitli.gani@gmail.com या इ-पत्त्यावर पाठवा. ते रसिकांना ऐकण्यासाठी इथे उपलब्ध करून दिले जाईल. |
| दुस्तर | - | पार करण्यास अवघड. |
| शीर्ण | - | जीर्ण / कृश. |
| सरिता | - | नदी. |
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