सासुर्यास चालली लाडकी
सासुर्यास चालली लाडकी शकुंतला
चालतो तिच्यासवे, तिच्यात जीव गुंतला !
ढाळतात आसवे मोर-हरीणशावके
मूक आज जाहले सर्व पक्षी बोलके
यापुढे सखी नुरे, माधवी-लते तुला !
पान पान गाळुनी दुःख दाविती तरू
गर्भिणी मृगी कुणी वाट ये तिची धरू
दंती धरुन पल्लवा आडवी खुळी तिला !
भावमुक्त मी मुनी, मला न शोक आवरे
जन्मदांस सोसवे दुःख हे कसे बरे?
कन्यका न कनककोष मी धन्यास अर्पिला !
चालतो तिच्यासवे, तिच्यात जीव गुंतला !
ढाळतात आसवे मोर-हरीणशावके
मूक आज जाहले सर्व पक्षी बोलके
यापुढे सखी नुरे, माधवी-लते तुला !
पान पान गाळुनी दुःख दाविती तरू
गर्भिणी मृगी कुणी वाट ये तिची धरू
दंती धरुन पल्लवा आडवी खुळी तिला !
भावमुक्त मी मुनी, मला न शोक आवरे
जन्मदांस सोसवे दुःख हे कसे बरे?
कन्यका न कनककोष मी धन्यास अर्पिला !
| गीत | - | ग. दि. माडगूळकर |
| संगीत | - | सुधीर फडके |
| स्वर | - | सुधीर फडके |
| चित्रपट | - | सुवासिनी |
| राग / आधार राग | - | जोग |
| गीत प्रकार | - | चित्रगीत |
| कनक | - | सोने. |
| नुरणे | - | न उरणे. |
| पल्लव | - | पदर. |
| माधवी (माध्वी) | - | वसंत ऋतू / मधापासून केलेले मद्य. |
| लता (लतिका) | - | वेली. |
| शावक | - | मूल. |
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सुधीर फडके