शंकाहि नाहीं कालीं ज्या
          शंकाहि नाहीं कालीं ज्या । दुर्गति जवे ये तदा ॥
धूर्त कपटी अरि । जैसा रण करी ।
तेविं विधा ही सदा ॥
          धूर्त कपटी अरि । जैसा रण करी ।
तेविं विधा ही सदा ॥
| गीत | - | वि. सी. गुर्जर | 
| संगीत | - | गंधर्व नाटक मंडळी, बाई सुंदराबाई | 
| स्वर | - | हिराबाई बडोदेकर | 
| नाटक | - | एकच प्याला | 
| राग / आधार राग | - | खमाज | 
| ताल | - | पंजाबी | 
| चाल | - | मैं तोसे नाही बोलोरे | 
| गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत | 
| अरि | - | शत्रु. | 
Please consider the environment before printing.
कागद वाचवा.
कृपया पर्यावरणाचा विचार करा.
            
  
  
  
  
  
  
  
  
  
  











 हिराबाई बडोदेकर