तू येता सखि माझ्या सदनी
तू येता सखि माझ्या सदनी
जीवन सुफलित झाले !
तू संजीवक सुखदा मूर्ती
प्रणयार्ताची आशापूर्ती
स्नेहमयी तू प्रीती ! प्रीती !
युगायुगांचे तृषित हृदय हे
तुजला बघुन निवाले !
जीवन सुफलित झाले !
तू संजीवक सुखदा मूर्ती
प्रणयार्ताची आशापूर्ती
स्नेहमयी तू प्रीती ! प्रीती !
युगायुगांचे तृषित हृदय हे
तुजला बघुन निवाले !
| गीत | - | शान्ता शेळके |
| संगीत | - | पं. जितेंद्र अभिषेकी |
| स्वर | - | अरविंद पिळगांवकर |
| नाटक | - | वासवदत्ता |
| गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
| तृषा | - | तहान. |
| निवणे | - | शांत होणे. |
| संजीवनी | - | नवजीवन / मेलेला प्राणी जिवंत करणारी विद्या. |
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अरविंद पिळगांवकर