विराट ज्ञानी कोंदटला
विराट ज्ञानी कोंदटला सुमनीं ॥
सुमन रेणु चराचरभुवनीं, परि तें कृष्ण जाण;
कणकण असे महाजन, कारण मागें उभा धनी ॥
सुमन रेणु चराचरभुवनीं, परि तें कृष्ण जाण;
कणकण असे महाजन, कारण मागें उभा धनी ॥
| गीत | - | कृ. प्र. खाडिलकर |
| संगीत | - | मास्टर कृष्णराव |
| स्वराविष्कार | - | ∙ पं. कुमार गंधर्व ∙ बालगंधर्व ( गायकांची नावे कुठल्याही विशिष्ट क्रमाने दिलेली नाहीत. ) |
| नाटक | - | द्रौपदी |
| राग / आधार राग | - | पहाडी |
| ताल | - | खेमटा |
| चाल | - | करोना कोई |
| गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
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पं. कुमार गंधर्व