आज मी आळविते केदार
फुले स्वरांची उधळित भवती गीत होय साकार
आज मी आळविते केदार !
गोड काहि तरि मना वाटले
अबोध सुंदर भाव दाटले
मुखी मनोगत सहज उमटले कंपित होता तार
फिरत अंगुली वीणेवरती
मौनातुनी संवाद उमलती
स्वरास्वरांवर लहरत जाती भावफुले सुकुमार
जे शब्दांच्या अतीत उरते
स्वरांतुनी या ते पाझरते
एक अनामिक अर्थ घेतसे स्वरांतुनी आकार
आज मी आळविते केदार !
गोड काहि तरि मना वाटले
अबोध सुंदर भाव दाटले
मुखी मनोगत सहज उमटले कंपित होता तार
फिरत अंगुली वीणेवरती
मौनातुनी संवाद उमलती
स्वरास्वरांवर लहरत जाती भावफुले सुकुमार
जे शब्दांच्या अतीत उरते
स्वरांतुनी या ते पाझरते
एक अनामिक अर्थ घेतसे स्वरांतुनी आकार
गीत | - | डॉ. वसंत अवसरे |
संगीत | - | वसंत पवार |
स्वर | - | मधुबाला जव्हेरी |
चित्रपट | - | अवघाचि संसार |
राग | - | केदार |
गीत प्रकार | - | चित्रगीत |
अंगुली | - | बोट. |
अतीत | - | पलीकडे. |
Print option will come back soon