लाविली थंड उटी वाळ्याची
लाविली थंड उटी वाळ्याची सखिच्या कुचकलशां ती ॥
कमलसुतंतु करी करि कंकण बंधित परि शोभे ती ॥
मदन निदाघ जनीं संचरुनी ताप समानचि देती ॥
युवतिस तपवि निदाघ जरी तो सुंदर कांति नुरे ती ॥
कमलसुतंतु करी करि कंकण बंधित परि शोभे ती ॥
मदन निदाघ जनीं संचरुनी ताप समानचि देती ॥
युवतिस तपवि निदाघ जरी तो सुंदर कांति नुरे ती ॥
गीत | - | अण्णासाहेब किर्लोस्कर |
संगीत | - | अण्णासाहेब किर्लोस्कर |
स्वर | - | पं. वसंतराव देशपांडे |
नाटक | - | शाकुंतल |
राग | - | मालकंस |
ताल | - | त्रिवट |
गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
कुच | - | स्त्रीचे स्तन. |
निदाघ | - | उष्णता / घाम. |
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