सखे शशिवदने
सखे शशिवदने ।
किती रुचिर, बिंबसम अधर, परम सुकुमार ॥
अधरसुधा तव पिउनी कसें गे ।
अयशोविष मी सेविन सांगे ।
विधुकरशुचिरदने ॥
किती रुचिर, बिंबसम अधर, परम सुकुमार ॥
अधरसुधा तव पिउनी कसें गे ।
अयशोविष मी सेविन सांगे ।
विधुकरशुचिरदने ॥
गीत | - | गो. ब. देवल |
संगीत | - | गो. ब. देवल |
स्वर | - | पं. जितेंद्र अभिषेकी |
नाटक | - | संगीत मृच्छकटिक |
राग | - | ललत |
ताल | - | त्रिताल |
गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत, शब्दशारदेचे चांदणे |
विधु | - | चंद्र. |