सानुराग गगनीं रवि
सानुराग गगनीं रवि । विचरे दिनिं सतत काल ।
अवलोकिती सकल लोक । सुखनिधान गुणवितान ।
सावकाश सावधान ॥
उदासीन गगनगता । तुच्छ गमति धराशायि ।
पूजिति नच तो विलोकी । जन अनाथ । गगननाथ ।
सावकाश सावधान ॥
अवलोकिती सकल लोक । सुखनिधान गुणवितान ।
सावकाश सावधान ॥
उदासीन गगनगता । तुच्छ गमति धराशायि ।
पूजिति नच तो विलोकी । जन अनाथ । गगननाथ ।
सावकाश सावधान ॥
गीत | - | श्रीपाद कृष्ण कोल्हटकर |
संगीत | - | वझेबुवा |
स्वर | - | रामदास कामत |
नाटक | - | संन्याशाचा संसार |
चाल | - | ’परब्रह्म परमेसर’ या चालीवर. |
गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
अनुराग | - | प्रेम, निष्ठा. |
निधान | - | खजिना / स्थान. |
विचरणे | - | हिंडणे, भटकणे. |
वितान | - | छत. |
विलोकी | - | दृष्य. |
शायी | - | निजणारा. |
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