वेध तुझा लागे
वेध तुझा लागे सतत मनी । वसतचि केली नामे वदनी ॥
जगत सकल सखि भासत त्वन्मय । मधूर रूप तव खेळे नयनी ॥
जगत सकल सखि भासत त्वन्मय । मधूर रूप तव खेळे नयनी ॥
गीत | - | वि. सी. गुर्जर |
संगीत | - | गंधर्व नाटक मंडळी, बाई सुंदराबाई |
स्वर | - | राम फाटक |
नाटक | - | एकच प्याला |
राग | - | बिहाग |
ताल | - | त्रिवट |
चाल | - | टोर सौनई पायओ |
गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत |
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