राधाधरमधुमिलिंद जयजय
          राधाधरमधुमिलिंद । जयजय रमारमण हरि गोविंद ॥
कालिंदी-तट-पुलिन-लांच्छित सुरनुतपादारविंद, जयजय ॥
उद्धृतनग मध्वरिंदमानघ सत्यपांडपटकुविंद, जयजय ॥
गोपसदनगुर्वलिंदखेलन बलवत्स्तुतितें न निंद, जयजय ॥
          कालिंदी-तट-पुलिन-लांच्छित सुरनुतपादारविंद, जयजय ॥
उद्धृतनग मध्वरिंदमानघ सत्यपांडपटकुविंद, जयजय ॥
गोपसदनगुर्वलिंदखेलन बलवत्स्तुतितें न निंद, जयजय ॥
| गीत | - | अण्णासाहेब किर्लोस्कर | 
| संगीत | - | अण्णासाहेब किर्लोस्कर | 
| स्वराविष्कार | - | ∙ शरद जांभेकर ∙ रामदास कामत ∙ प्रभाकर कारेकर ∙ पं. भीमसेन जोशी ( गायकांची नावे कुठल्याही विशिष्ट क्रमाने दिलेली नाहीत. ) | 
| नाटक | - | सौभद्र | 
| राग / आधार राग | - | यमन | 
| चाल | - | विठाई माउली | 
| गीत प्रकार | - | नाट्यसंगीत | 
| अण्ड | - | ब्रह्मांड. | 
| अनघ | - | पापरहित. | 
| अरविंद | - | कमळ. | 
| अरि | - | शत्रु. | 
| अलिंद | - | घराच्या पुढचा ओटा. | 
| उद्धृतनग | - | गोवर्धन पर्वत. | 
| कुविंद | - | विणकर (कोष्टी). | 
| कालिंदी | - | यमुना नदी. कालिंद पर्वतातून उगम पावलेल्या यमुना नदीस कालिंदी म्हणूनही संबोधण्यात येते. | 
| पुलिन | - | वाळू. | 
| मधु-कैटभ | - | मधु व कैटभ हे विष्णू निजला असता त्याच्या कानातून उत्पन्न झाले. हे ब्रह्मदेवास भक्षणार होते, इतक्यात विष्णूने त्यांना ठार मारले. | 
| मिलिंद | - | भ्रमर, काळा भुंगा. | 
| रमण | - | पती. | 
| सत्यप | - | ब्रह्मदेव. | 
| सुर | - | देव. | 
पृथक्
                राधा-अधर-मधु-मिलिंद । जयजय रमा-रमण हरि गोविंद ॥
कालिंदी-तट-पुलिन-लांच्छित सुर-नत-पद-अरविंद, जयजय ॥
उद्धृतनग मधु-अरि-दम-अनघ सत्यप-अण्ड-पट-कुविंद, जयजय ॥
गोप-सदन-गुरु-अलिंद-खेलन बलवत् (बलवंत- खुद्द नाटककार बळवंत पांडुरंग किर्लोस्कर)-स्तुति-तें न-निंद, जयजय ॥
 
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 पृथक्
  पृथक् दाद द्या अन् शुद्ध व्हा !
 दाद द्या अन् शुद्ध व्हा !